
टूटी हुई तलवार

एक दिन दरबार में एक युवा सिपाही बड़े गर्व के साथ प्रवेश किया। उसके हाथ में एक टूटी हुई तलवार थी। वह अकबर के सामने आया और बोला,
"जहाँपनाह! यह देखिए! यह वही तलवार है जिससे मैंने अकेले दस दुश्मनों को हराया!"
दरबार में एक हल्की-सी सराहना की फुसफुसाहट गूंजी, लेकिन बीरबल शांत बैठे रहे।
बीरबल ने सिपाही की ओर देखा और मुस्कुराते हुए पूछा,
"बहादुरी तो प्रशंसा योग्य है, लेकिन बताओ — आज तुमने कितने झूठों को हराया?"
सिपाही का चेहरा उतर गया। वह चुपचाप सिर झुका कर खड़ा रहा।
बीरबल ने आगे कहा,
"एक टूटी तलवार को लेकर अपनी शान बढ़ाना आसान है, लेकिन सच्चाई को स्वीकार करना कठिन होता है। जो सच्चा योद्धा होता है, उसे अपनी वीरता का ढिंढोरा नहीं पीटना पड़ता।"
अकबर ने सहमति में सिर हिलाया और कहा,
"बीरबल, तुमने फिर एक गहरी बात सहज शब्दों में कह दी। बहादुरी सादगी में झलकती है, ना कि शोरगुल में।"
सिपाही ने अपनी गलती मानी और बीरबल से सीख लेने की इच्छा जताई।
नीति: घमंड, तलवार से भी जल्दी टूटता है।
सच्ची वीरता को दिखावा नहीं, धैर्य और ईमानदारी चाहिए।