
क्रोध की प्रतिध्वनि

एक दिन दरबार में व्यवहार और प्रतिक्रिया पर चर्चा चल रही थी।
अकबर ने सवाल किया:
“क्या यह सच है कि हम जैसा व्यवहार करते हैं, वैसा ही दुनिया से हमें लौटता है?”
कुछ दरबारी बोले,
“नहीं जहाँपनाह, दुनिया अक्सर बिना वजह भी बुरा बर्ताव कर देती है।”
दूसरे बोले,
“यह तो परिस्थितियों पर निर्भर करता है।”
तभी बीरबल मुस्कराए और बोले,
“जहाँपनाह, यदि अनुमति दें तो मैं एक छोटा-सा प्रयोग कराना चाहूँगा।”
अकबर ने इजाज़त दी।
अगले दिन, बीरबल एक दरबारी को साथ लेकर महल के पास की एक पहाड़ी पर गए।
वहाँ गूंज (echo) बहुत साफ़ सुनाई देती थी।
बीरबल ने दरबारी से कहा:
“जोर से पहाड़ियों की ओर देखकर गुस्से में चिल्लाओ — जैसे किसी ने तुम्हारा अपमान किया हो।”
दरबारी ज़ोर से बोला,
“मैं तुमसे नफ़रत करता हूँ!”
तुरंत पहाड़ियों से वही आवाज़ लौटी:
"मैं तुमसे नफ़रत करता हूँ!"
उसकी आवाज़ की गूंज कई बार वापस आई।
अब बीरबल बोले:
“अब उसी जगह खड़े होकर प्यार और खुशी से कुछ कहो।”
दरबारी ने मुस्कराकर कहा,
“मैं तुम्हें पसंद करता हूँ! तुम अच्छे हो!”
और फिर वही गूंज लौटी:
“तुम अच्छे हो… अच्छे हो…”
दरबारी चकित रह गया। बीरबल बोले:
“यही है जीवन का सत्य — जैसा आप संसार में भेजते हैं, वही आपको लौटकर मिलता है।
अगर आप क्रोध, द्वेष और कठोरता से बात करेंगे — तो वही ऊर्जा लौटेगी।
लेकिन अगर आप स्नेह, मुस्कान और समझदारी दिखाएँगे — तो वह भी आपको वापस मिलेगा।”
बाद में दरबार में बीरबल ने यह पूरी घटना सुनाई।
अकबर ने सिर हिलाते हुए कहा:
“सचमुच, जीवन एक प्रतिध्वनि है — जो बोओगे, वही काटोगे।”
नीति : “दुनिया एक दर्पण है — जैसा व्यवहार करेंगे, वैसी ही छवि लौटेगी।”
“जीवन में जो भाव हम देते हैं, वही किसी न किसी रूप में वापस आता है।”