एक-आँख वाला घोड़ा

एक-आँख वाला घोड़ा

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एक दिन दरबार में एक धनी व्यापारी आया। वह एक सुंदर, चमकदार और ताक़तवर घोड़ा लेकर आया था।
उसने घोड़े की बहुत तारीफ़ की —
“यह घोड़ा बिल्कुल बेदाग़ है, तेज़ रफ्तार है, और किसी भी युद्ध या सवारी के लिए उत्तम है।”

अकबर ने घोड़े को देखकर उसकी सुंदरता की प्रशंसा की और उसे राज्य के अस्तबल में शामिल करवा दिया।
कुछ दिन बाद, जब घोड़ा युद्धाभ्यास के लिए इस्तेमाल किया गया, तो सैनिकों को महसूस हुआ कि घोड़ा एक आँख से अंधा है।

यह बात दरबार तक पहुँची।

अकबर को क्रोध आया और उन्होंने व्यापारी को दरबार में बुलाया।
“तुमने झूठ बोला! तुमने कहा था कि घोड़ा बेदाग़ है, लेकिन यह एक आँख से अंधा है!”

व्यापारी बोला,
“जहाँपनाह, वह तो इतने दिनों तक ठीक चला — किसी ने नहीं पहचाना, इसका मतलब वह दोष तो मायने ही नहीं रखता।”

भीड़ में खड़ा बीरबल अब आगे आया।
वह मुस्कराया और बोला,
**“व्यापारी ठीक कह रहा है — कि कुछ समय तक झूठ छिप सकता है… लेकिन हमेशा नहीं।”
“असली बात यह है कि झूठ कितना भी घोड़े की तरह तेज़ दौड़ ले, सच एक दिन उसे पकड़ ही लेता है।”

बीरबल ने आगे कहा:
**“आपने घोड़े को जनता के सामने रखा — सच तो तब प्रकट हुआ जब वह कर्म में आया, काम में आया।”
“दिखावे से नहीं, व्यवहार से चीज़ों की सच्चाई सामने आती है।”

अकबर ने व्यापारी को दंडित किया और राज्य में घोषणा की —
“अब से हर विक्रेता की वस्तु पहले जांची जाएगी, ताकि कोई झूठ, सच का रूप न ले सके।”

नीति : “झूठ तेज़ चल सकता है, पर सच मंज़िल तक ज़रूर पहुँचता है।”
          “दिखावा कुछ समय तक काम करता है — असली पहचान तो कर्म से होती है।”