
ईमानदार बढ़ई

एक दिन, एक गरीब लेकिन कुशल बढ़ई ने अपने हाथों से एक सुंदर लकड़ी की कुर्सी बनाई। उसने महीनों मेहनत की, हर नक़्क़ाशी को प्रेम और समर्पण से तराशा। जब वह कुर्सी पूरी हुई, तो वह उसे सम्राट अकबर को भेंट करने महल पहुँचा।
महल के दरबार में सब उस कुर्सी को देखकर दंग रह गए। कुर्सी भले ही सोने या चाँदी से नहीं जड़ी थी, लेकिन उसमें कलात्मकता, सौंदर्य और श्रम की सादगी झलक रही थी।
अकबर ने कुर्सी की प्रशंसा करते हुए कहा, “यह बहुत सुंदर है। इसकी क़ीमत बताओ, हम तुम्हें इसका उचित इनाम देंगे।”
बढ़ई ने हाथ जोड़कर विनम्रता से कहा,
“जहाँपनाह, मैंने यह कुर्सी धन के लिए नहीं बनाई। यह मेरे शिल्प, मेरी कला और समर्पण की अभिव्यक्ति है। इसे आपको भेंट करना मेरे लिए सम्मान है — यही मेरी सबसे बड़ी कमाई है।”
अकबर उस सच्चे भाव से अभिभूत हो गए। उन्होंने बीरबल की ओर देखा और बोले, “क्या तुम्हें नहीं लगता, ऐसे कलाकार को सम्मान मिलना चाहिए?”
बीरबल मुस्कराए और बोले, “जहाँपनाह, यही सच्चा सम्मान है — जो बिना अपेक्षा के आता है। सिंहासन क़ीमत नहीं, भावना को महत्व देता है।”
अगले दिन एक अमीर व्यापारी महल में आया। उसने अपने साथ सोने से जड़ा हुआ भव्य फर्नीचर लाया — बेशकीमती सामग्री, रत्न जड़े हुए हत्थे, चमचमाता लकड़ी का काम। उसने अकबर से कहा, “मैंने यह सब विशेष रूप से आपको भेंट किया है। मुझे आशा है कि आप बदले में मुझे ‘दरबारी सम्मान’ या कोई बड़ी उपाधि देंगे।”
अकबर ने मुस्कराकर बीरबल की ओर देखा।
बीरबल ने व्यापारी से कहा, “आपका फर्नीचर भले ही कीमती हो, लेकिन उसमें भाव नहीं, लेन-देन की अपेक्षा है। वह कुर्सी, जो एक गरीब बढ़ई ने बिना किसी उम्मीद के बनाई थी, उसका मूल्य कहीं अधिक है — क्योंकि वह भावना से बनी थी, न कि सौदे से।”
अकबर ने उसी क्षण बढ़ई को बुलाया और कहा, “तुम्हारा सच्चा भाव हमारे सिंहासन के योग्य है। आज से हम तुम्हारी आजीवन देखभाल का वादा करते हैं।”
नीति : “सच्चे भाव की चमक, दिखावे की चमक से कहीं अधिक होती है।”
“जिस भेंट में प्रेम हो, वह सोने से अधिक मूल्यवान होती है।”