
अनगिनत तारे

एक शांत रात के बाद, सुबह-सुबह सम्राट अकबर आकाश की ओर निहार रहे थे।
नीला आसमान और उस पर टिमटिमाते अनगिनत सितारे उन्हें मंत्रमुग्ध कर रहे थे।
उन्होंने मुस्कराकर दरबार में पूछा,
“बीरबल, क्या तुम मुझे बता सकते हो — आकाश में कुल कितने तारे हैं?”
पूरे दरबार में सन्नाटा छा गया।
कुछ मंत्री सोच में पड़ गए, कुछ हँसी दबाने लगे।
बीरबल बोले, “जहाँपनाह, इसका उत्तर देने से पहले, एक छोटा-सा कार्य पूरा करना होगा।”
अगले दिन, बीरबल एक बोरी में भरकर बाजरा लाए और उसे पूरे आँगन में फैला दिया।
बोले, “इन बाजरे के दानों को गिन लीजिए। जब ये पूरे हो जाएँ, फिर हम तारों की गिनती शुरू करेंगे।”
अकबर ठहाका लगाकर हँस पड़े।
“बीरबल,” उन्होंने कहा, “तुम्हारा इशारा मैं समझ गया। हर चीज़ को गिनना आवश्यक नहीं होता।”
बीरबल ने विनम्रता से उत्तर दिया,
“कुछ चीज़ें गणना के लिए नहीं — केवल देखने, महसूस करने और सराहने के लिए होती हैं। सितारे उन्हीं में से हैं।”
नीति: हर चीज़ को गिनने की ज़रूरत नहीं होती — कुछ चीज़ें सिर्फ़ महसूस करने के लिए होती हैं।
जिनकी संख्या नहीं, उनका सौंदर्य अनंत होता है।